नाटक ‘‘असे पाहुणे येती''
कलाकारः- आनंद अभ्यंकर, आशा साठे, विघ्नेश जोशी
प्रस्तुतीः- वसंत वलय, मुंबई
समीक्षा श्री पद्माकर पागे की कलम से।
झलकियाँ
प्रस्तुतीः- वसंत वलय, मुंबई
समीक्षा श्री पद्माकर पागे की कलम से।
मेहमानों का आगमन खुशी और उल्लास भर देता है। अगर वह परिवार में आने वाला नया मेहमान हो तो फिर क्या बात है। एक तरफ इस मेहमान की बात वहीं दूसरी तरफ पहले से तय कार्यक्रम के बीच कोई अतिथि आ टपकता है तो मनःस्थिति बदल जाती है और फिर उसे टालने के जतन शुरू होते हैं। झूठ बोलन, बहाना बनाने का क्रम चालू हो जाता है। ऐसे में मेहमान अड ही जाये या कह दे ‘‘मैं भी आपके साथ हूँ'' तो फिर क्या? यह व्यथा गणेशोत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रम वसंत वलय मुंबई व्दारा मंचित नाटक ‘‘असे पाहुणे येती'' में बताई गई।
इस आपाधापी से भरे जीवन में मनुष्य को अपने लिये ही समय निकालने में समस्या है वहाँ अगर मेहमान एक दो दिन के लिये आ कर टिक जाये तो फिर क्या। ऐसे कई मौके नाटक में आते हैं और फजिहत पैदा करते हैं परिवार में। हास्य व्यंग से भरे संवादों ने दर्शकों को खूब हंसाया। वहीं रियलिटी शो के माध्यम से आ रही अव्यवस्था पर करारा तमाचा भी जडा.। हमें क्या दिखाया जा रहा है और हम क्या देख रहे हैं यह भी एक विचारणीय है। तीन कलाकार आनंद अभ्यंकर , विघ्नेश जोशी, आशा साठे से सज्जित इस नाटक की विशेषता यह थी कि उन्होंने 15 अलग अलग चरित्रों को मंच पर साकार किया। लेखक दिग्दर्शक एम.एच.म्हसवेकर की यह कृति प्रत्येक व्यक्ति से जुडी कहानी है। जिससे हम सब कमोबेश जुड़े हुए हैं। और लगता है यह जीवन एक रंगमंच है और हम सब अभिनेता।
झलकियाँ
3 comments:
aapneko natak adi ki jhalkiya vedio recording kar you tube par upload kar yaha link dalte aaygi kya ???--satish bhave
bahut hi umda prastuti thi vasant valay ki. is natak ka hindi rupantaran mangaya hai .... . yugbodh hetu...
khoob changla program hota,it contaained a total package of comedy as well as a sense to human realities which we ignore in life
Post a Comment