Wednesday, August 26, 2009

गणेशोत्‍सव 2009-दिवस 4 - नाटक ‘‘तो येणार आहे''

आज रात्री नाट्‌य भारती इन्‍दुर, श्रीराम जोग इन्‍दुर आणी टीम ह्यांनी एक नाटक सादर केले ‘‘तो येणार आहे''। इतर कार्यक्रमां पेक्षा पूर्ण हॉल दर्शकांनी भरलेला होता।
समीक्षा श्री पद्‌माकर पागे की कलम से।
‘‘वो आने वाला है'' तमाम सुविधाएं हैं फिर भी आज आदमी अकेला किसी के साथ कुछ समस्‍या है तो किसी अन्‍य के साथ कुछ और, एक परिवार सुखी तो है परन्‍तु माता-पिता को अपने पुत्र जिसे बहुत लाड प्‍यार से पाला पोसा बडा किया लेकिन वेा एैसी संगत में पड. गया कि महिनों उसका कुछ पता माँ बाप को नहीं लग पाता, स्‍थिति यहाँ तक कि पिता उसकी याद में रात बे रात जाग जाता हैं उसे आभास होता रहता है कि उसक बेटा विश्‍वास उसे पुकार रहा है। पिता मिस्‍टर रत्‍नपारखी इसी चिंता में रहता है कि वो आयेगा।
विश्‍वास के मित्र से भी हमेशा जानकारी लेता रहता है परन्‍तु उसे ज्ञात होता है कि उसके संबंध गलत लोगों के साथ हैं यहाँ तक की एक रोज माया यह कहकर उनसे मिलती है कि उसके विश्‍वास से संबंध हैं व उसके पेट में विश्‍वास से गर्भ है। पिता रत्‍नपारखी को विश्‍वास नहीं होता। पिता के पुत्र के प्रति मोह पर केन्‍द्रित है यह नाटक ‘‘तो येणार आहे'' लेकिन समय के साथ साथ सारी बातें सामने आती हैं। उसे धमकी भरे फोन भी आते हैं पिता चिंतित होते हैं एक दिन उसे समाचार मिलता है कि उसको गोली मार दी गई और वह इस दुनिया में नहीं है पुलिस तहकीकात, मित्रों से मिली सुचनांएं उसकी मित्र माया से सारी बातें स्‍पष्‍ट हो जाती हैं तब मालूम होता है कि वह महाराष्‍ट्र पुलिस के लिये कार्य करता था। और कालोनाईजर पटेल ने उसकी हत्‍या करवा दी है।
रत्‍नपारखी (श्रीराम जोग) एक मंझे हुए कलाकार हैं पिता की भूमिका जो कि इस नाटक की आत्‍मा है ने अपने भावपूर्ण अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। वैसे तो भी कलाकारों ने अपनी भूमिका के साथ न्‍याय किया। फिर भी श्री एवं श्रीमति रत्‍नपारखी (तनवी अकोलेकर), माया (प्रतिक्षा बेलसरे), ओसवाल (विकास दिंडोलकर) ने नाटक में अपनी भूमिका बहुत ही प्रभावी रूप से की है।
आशा की किरण रत्‍नपारखी को है की वो आयेगा। तो वह की माया के गर्भ में पल रहा बच्‍चा विश्‍वास का ही रूप होगा। वहीं दूसरी और यह भी की उसके बेटे ने एक अच्‍छा काम किया है। नाटक गंभीर था और अंत तक यह रहस्‍य बना रहा ‘‘वो आने वाला है'' नाटक समाप्‍ती पर यह बात उजागर होती है की वो आयेगा याने कौन!
नाटक के संवाद प्रभावी थे और पूरे समय तक दर्शकों को बांधे रखा। अन्‍य भूमिका में विश्‍वास (विशाल परांजपे), इंस्‍पेक्‍टर (मुकुंद तेलंग), पटेल (प्रफुल्‍ल जैन), रणजीत (जय हार्डिया), हवालदार (गजानन शाजापुरकर)।
संगीत - प्रफुल्‍ल जैन,
प्रकाश - मुकुंद तेलंग, विशाल परांजपे,
नैपथ्‍य - सुबोध बेलसरे, जय हार्डिया
प्रस्‍तुति - नाट्‌य भारती, इन्‍दुर
सभी कलाकारों के समर्पित प्रयासों का ही नतीजा था कि लेखक अरविंद लिमये लिखित एवं दिग्‍दर्शक श्रीराम जोग की यह प्रस्‍तुति जो की नाट्‌य भारती, इंदौर का मंचन था। रतलाम के नाट्‌य प्रेमियों को महाराष्‍ट्र समाज में आयोजित सार्वजनिक गणेशोत्‍सव में एक सुखद अनुभुति दे गया। एक सुंदर प्रस्‍तुति के माध्‍यम से।
विशेषः- मध्‍यप्रदेश के इस नाटक को मुंबई के नाट्‌य समारोह में चालीस वर्षों के बाद विशेष पुरस्‍कार मिला है। जो की अपने आप में एक उपलब्‍धि है।
नाटकातले काही फोटो।




1 comment:

Unknown said...

aachha prayas hai. jaari rakhiye.