हिन्दी भाषी पाठकों की विशेष मांग पर ब्लाग लेखक व्दारा समीक्षा हिन्दी में दी जा रही है।
नाटक ‘‘येरे-येरे पाहुण्या'' अर्थात आ-रे आ-रे मेहमान का मंचन लेखक,दिग्दर्शक व कलाकार श्री दिलीप कुलकर्णी के निर्देशन में हुआ।
नाटक ‘‘येरे-येरे पाहुण्या'' अर्थात आ-रे आ-रे मेहमान का मंचन लेखक,दिग्दर्शक व कलाकार श्री दिलीप कुलकर्णी के निर्देशन में हुआ।
कार्यक्रमाची विडियो क्लिप रेकार्डिंग बघण्यासाठी आरकुट कम्युनिटी Marathi Ratlam 457001 ज्याईन करावी।
नाटक मराठी भाषा में होकर एक ऐसे परिवार का था जिसमें मुखिया अंधविश्वासी व अत्यंत कंजूस प्रवृत्ती का होकर घर आने वाले मेहमान को लूटता है। मेहमान के घर पहुँचते ही वह उसकी पत्नी व बच्चे सहित उसकी तब तक आरती उतारते ही रहते हैं जब तक मेहमान आरती की थाली में कुछ रूपये नहीं रख देता, उसके पश्चात उनका बेटा मेहमान के पैर तब तक छूता ही रहता है जब तक मेहमान बच्चे के हाथ में कुछ रूपये नहीं रख देता, इतना ही नहीं मेहमान व्दारा लाये गये साबुन, तेल, क्रीम आदि पर भी परिवार के लोग हाथ साफ कर देते हैं। इस प्रकार धीरे धीरे उसके जाने के पहले उसका सारा सामान ही साफ कर देते हैं।
इसी प्रकार एक जनगणना अधिकारी जब उनके घर जनगणना की जानकारी एकत्रित करने आता है तब उसके साथ भी अत्यंत कंजूसी भरा व्यवहार किया जाता है।
लेकिन आने वाला पहला मेहमान भी कम नहीं होता वह एक अन्य व्यक्ति को भेजकर उस परिवार को सूचना देता है कि उनको दस लाख रूपये की लाटरी लगी है जिसे प्राप्त करने के लिये उन्हें पहले दस हजार रूपये भरना होंगे और एक फार्म साईन करना होगा। लालची मुखिया विभिन्न मेहमानों को लूटकर आज तक एकत्रित रूपये लाटरी वाले के हाथ दे देता है। नाटक के अंत में लाटरी के धोखे में बच्चे गोद लेने वाला फार्म साईन करने से, उसके घर गोद लिये गये बच्चों की एक फौज आ जाती है जिसका पालन पोषण अब उसे ही करना होता है।
नाटक में हास्य विनोद के साथ ही कलाकारों का उम्दा अभिनय दर्शकों को आनंद की अनुभूति करा गया। उल्लेखनीय है कि लगभग एक दशक के अंतराल से स्थानीय कलाकारों, लेखक दिग्दर्शक के व्दारा किया गया प्रयास दर्शकों को बहुत पसंद आया।
इसी प्रकार एक जनगणना अधिकारी जब उनके घर जनगणना की जानकारी एकत्रित करने आता है तब उसके साथ भी अत्यंत कंजूसी भरा व्यवहार किया जाता है।
लेकिन आने वाला पहला मेहमान भी कम नहीं होता वह एक अन्य व्यक्ति को भेजकर उस परिवार को सूचना देता है कि उनको दस लाख रूपये की लाटरी लगी है जिसे प्राप्त करने के लिये उन्हें पहले दस हजार रूपये भरना होंगे और एक फार्म साईन करना होगा। लालची मुखिया विभिन्न मेहमानों को लूटकर आज तक एकत्रित रूपये लाटरी वाले के हाथ दे देता है। नाटक के अंत में लाटरी के धोखे में बच्चे गोद लेने वाला फार्म साईन करने से, उसके घर गोद लिये गये बच्चों की एक फौज आ जाती है जिसका पालन पोषण अब उसे ही करना होता है।
नाटक में हास्य विनोद के साथ ही कलाकारों का उम्दा अभिनय दर्शकों को आनंद की अनुभूति करा गया। उल्लेखनीय है कि लगभग एक दशक के अंतराल से स्थानीय कलाकारों, लेखक दिग्दर्शक के व्दारा किया गया प्रयास दर्शकों को बहुत पसंद आया।
कलाकारः- दिलीप कुलकर्णी, श्रीमती रेखा घोडके, सतीश भावे,
पराग रामपुरकर, महेश कस्तूरे एवं प्रशांत शौचे
कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ
मेहमान से रूपये झटकने हेतु उसकी आरती उतारते हुए
मेहमान से रूपये झटकने हेतु पैर पडते बेटा
मेहमान को विभिन्न प्रकार से उल्लु बनाने का प्रयास
मेहमान का सारा सामान गायब
जनगणना अधिकारी के साथ कंजुसी भरा व्यवहार
लॉटरी वाला आया
लॉटरी वाले को दस हजार का बैग सौंपा
पहला मेहमान पुनः प्रकट होकर लॉटरी की बधाई देते हुए
गोद लिये बच्चों की फौज
मेहमान को विभिन्न प्रकार से उल्लु बनाने का प्रयास
मेहमान का सारा सामान गायब
जनगणना अधिकारी के साथ कंजुसी भरा व्यवहार
लॉटरी वाला आया
लॉटरी वाले को दस हजार का बैग सौंपा
पहला मेहमान पुनः प्रकट होकर लॉटरी की बधाई देते हुए
गोद लिये बच्चों की फौज
कलाकारः- दिलीप कुलकर्णी, श्रीमती रेखा घोडके, सतीश भावे,
पराग रामपुरकर, महेश कस्तूरे एवं प्रशांत शौचे
पराग रामपुरकर, महेश कस्तूरे एवं प्रशांत शौचे
1 comment:
dhansu.....
from satish bhave
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